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पंडित नेहरू के पदचिह्नों पर PM मोदी, दोहराएंगे 1947 की कहानी, जानें- ‘सेंगोल’ का सफर

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नई संसद भवन का उद्घाटन करने वाले हैं। इस पर कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दलों ने रार ठान रखी है और उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार का ऐलान किया है। विपक्षी दलों की मांग है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नई संसद भवन का उद्घाटन कराया जाय। इस बीच पीएम मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पदचिह्नों पर चलते हुए 1947 जैसी रस्म पूरी करेंगे। वह नई संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर एक सुनहरा राजदंड (तमिल में ‘सेंगोल’) ग्रहण करेंगे।

1947 में सत्ता हस्तांतरण को चिह्नित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने तिरुवदुथुरै के ‘अधिनम’ के उप-पादरी से ‘सेन्गोल’ प्राप्त किया था। इस बार, 20 ‘अधिनम’ (तमिलनाडु में गैर-ब्राह्मण शैव मठ) के पुजारी उस अनुष्ठान को संपन्न करेंगे। ये पुजारी 20 मिनट के ‘होमम’ या ‘हवन’ के बाद सुबह 7.20 बजे पीएम मोदी को ‘सेन्गोल’ सौंपेंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री इसे स्पीकर के आसन के दाईं ओर एक आसन पर स्थापित करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “‘सेन्गोल’ निष्पक्ष और न्यायसंगत शासन के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। यह लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास ‘अमृत काल’ के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में चमकेगा, एक ऐसा युग जो नए भारत को दुनिया में अपना सही स्थान लेते हुए देखेगा।” शाह ने कहा, “सेंगोल को संग्रहालय में रखना ठीक नहीं है। यह अंग्रेजी हुकूमत से सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है। यह अमृतकाल का प्रतिबिम्ब होगा।”

1947 में भारत के अंतिम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी की सलाह पर ‘सेंगोल’ बनाया गया था, जब नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल से पूछा था कि अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण को कैसे चिह्नित किया जाना चाहिए। तब राजाजी ने राजा के राज्याभिषेक पर राजा को राजदंड सौंपने की ‘राजगुरु’ की प्राचीन चोल प्रथा का उल्लेख किया था। इसके बाद मद्रास के जौहरी वुम्मुदी बंगारू चेट्टी को चार सप्ताह में ‘सेन्गोल’ बनाने का काम सौंपा गया था। मूल राजदंड के निर्माण में शामिल रहे दो व्यक्तियों- वुम्मिदी एथिराजुलु (96) और वुम्मिदी सुधाकर (88) के भी नई संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होने की उम्मीद है।

14 अगस्त 1947 को वायसराय माउंटबेटन ने राजदंड को तमिल पंडितों को सौंप दिया था, जिन्होंने इसे शुद्ध किया और 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में जब ऐतिहासिक “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” भाषण देने के लिए प्रधान मंत्री नेहरू संसद भवन के लिए रवाना होने वाले थे तो उससे ठीक पहले उन्हें उनके घर पर सेंगोल सौंप दिया गया था। दशकों तक, उस राजदंड को भुला दिया गया। यह इलाहाबाद संग्रहालय में एक धूल भरे बक्से में पड़ा था, जिस पर गलत तरीके से नेहरू को उपहार में दी गई सोने की छड़ी के रूप में लेबल किया गया था।

अगस्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया रस्मी राजदंड (सेंगोल) इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू दीर्घा में रखा गया था और इसे संसद के नये भवन में स्थापित करने के लिए दिल्ली लाया गया है। चांदी से निर्मित और सोने की परत वाले इस ऐतिहासिक राजदंड को 28 मई को लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा। 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि राजदंड अंग्रेजों से भारत को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है, ठीक वैसे ही जैसे तमिलनाडु में चोल वंश के दौरान मूल रूप से इसका इस्तेमाल एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता हस्तांतरण के लिए किया जाता था। शाह ने बाद में एक वेबसाइट भी लॉन्च की, जिसमें लघु वृत्तचित्रों के साथ-साथ राजदंड के महत्व से संबंधित पृष्ठभूमि की जानकारी है। 

जब प्रधानमंत्री विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए आसन पर राजदंड स्थापित करेंगे, तब तिरुवदुथुरै ‘अधीनम’ श्री ला श्री अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामीगल सहित कई गणमान्य व्यक्ति और मठ प्रमुख सदन के आसन पर खड़े होंगे। ‘अधिनाम’ के कम से कम 31 सदस्य चार्टर्ड उड़ानों से दो जत्थों में नई दिल्ली के लिए चेन्नई से रवाना होंगे। 28 मई को होने वाले समारोह से पहले मोदी 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने आवास पर उन्हें सम्मानित भी करेंगे।



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NDA का बढ़ेगा कुनबा, BJP-TDP का हो सकता है गठबंधन, अमित शाह ने चंद्रबाबू नायडू के साथ किया मंथन

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2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर सभी दलों ने अपनी-अपनी तैयारी शुरू कर दी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के विजयी रथ को रोकने के लिए विपक्ष को एकजुट करने की पहल कर रहे हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी इसके जवाब में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का कुनबा बढ़ाने की कोशिशों में लगी है। खबर आ रही है कि टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू ने शनिवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात की है। इस बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे। यह बैठक गृह मंत्री के आवास पर हुई है।

यह बैठक में भाजपा और उसके पूर्व सहयोगी टीडीपी के बीच संभावित गठबंधन की अटकलों के बीच हुई है। इसमें इन नेताओं ने आंध्र प्रदेश में एक साथ आने की संभावना पर चर्चा की है। यहां चंद्रबाबू नायडू की पार्टी मुख्य विपक्षी दल है। इसके अलावा दोनों ने तेलंगाना में भी साथ आने पर चर्चा की है। आपको बता दें कि भाजपा नेतृत्व ने अपने ‘मिशन दक्षिण’ में तेलंगाना को फोकस बनाया है। इस राज्य में बीजेपी स्थानीय निकाय चुनावों में अपनी पैठ बना रही है।

सूत्रों का कहना है आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद के विशेष दर्जे की मांग को लेकर 2018 में बीजेपी से नाता तोड़ने वाले चंद्रबाबू नायडू तो बीजेपी के साथ चुनावी समझौते के इच्छुक हैं, लेकिन भाजपा की राज्य इकाई के कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया है। पिछले कुछ वर्षों में दोनों दलों के बीच संबंधों में खटास आ गई थी। ये नेता नायडू द्वारा 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना और बाद में कांग्रेस के प्रति उनके गर्मजोशी का हवाला देते हैं।

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद भाजपा नेतृत्व का ध्यान दक्षिण भारत के अन्य राज्यों विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पर केंद्रित है। यहां किसी भी कीमत पर वह कांग्रेस के लिए कोई लाभ की गुंजाइश छोड़ना नहीं चाहती है।

पहले जब अमित शाह से टीडीपी के साथ गठबंधन की संभावना के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने इनकार किया था, लेकिन पिछले साल से चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा नेताओं से मिलने के लिए कई बार दिल्ली का दौरा किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की थी। टीडीपी ने पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का भी समर्थन किया था।



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खुशखबरी : दिल्ली के स्कूलों में जल्दी होगी 26 हजार शिक्षकों की भर्ती, HC ने केजरीवाल सरकार को दिया आदेश

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दिल्ली में 26 हजार से अधिक शिक्षकों की जल्द भर्ती होगी। उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार और नगर निगम को अपने स्कूलों में शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है।



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Odisha Train Accident: बढ़ सकता है मृतकों का आंकड़ा; चश्मदीदों का दावा – मलबे में दबे हैं शरीर के अंग

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ओडिशा के बालासोर में कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे में मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है। जानकारों का मानना ​​है कि यह संख्या 300 से अधिक हो सकती है। शनिवार शाम तक रेलवे सूत्रों ने बताया है कि मरने वालों की संख्या 288 है। 800 से ज्यादा घायल। लेकिन चश्मदीदों का कहना है कि शरीर के अंग अब भी मलबे में दबे हुए  हैं। मलबे के नीचे कई शव भी दबे हो सकते हैं। नतीजतन, मरने वालों की संख्या बढ़ने की आशंका है। रेल सेवा शनिवार से सेवा सामान्य करने की कवायद शुरू हो गई है। लेकिन यह काफी समय लेने वाला माना जाता है।

संयोग से 10 मई 2010 को ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे में 148 लोगों की मौत हुई थी। इससे पहले, 2 अगस्त 1999 को रेलवे अधिकारियों के अनुसार, उत्तर बंगाल में इस्लामपुर के पास गेसल में एक रेल दुर्घटना में 285 लोगों की मौत हो गई थी। बालासोर कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे में मरने वालों की संख्या ने इन हादसों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। यदि मरने वालों की संख्या 300 को पार कर जाती है, तो दुर्घटना पूर्वी भारत में हाल के दिनों में घटने वाली सबसे घातक रेल दुर्घटना होगी।

जांच के बाद रेलवे की प्रारंभिक रिपोर्ट में कोरोमंडल हादसे का कारण सिग्नलिंग में खराबी बताया गया है। हालांकि, रेलवे अधिकारियों के एक वर्ग के अनुसार, विस्तृत जांच से दुर्घटना के कारणों का पता चल पाएगा। साइट निरीक्षण के बाद एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया, “अप मेन लाइन पर हरी झंडी दे दी गई थी। लेकिन ट्रेन उस लाइन में नहीं आई। ट्रेन लूप लाइन में चली गई। वहां पहले से ही एक मालगाड़ी खड़ी थी। उससे टक्कर में कोरोमंडल एक्सप्रेस पटरी से उतर गई।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ”इस बीच बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस डाउन लाइन से होते हुए बालासोर की ओर जा रही थी। उस ट्रेन के दो डिब्बे भी पटरी से उतरे। लेकिन मेन लाइन पर हरी झंडी मिलने के बावजूद अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन में कैसे आई। ऐसे में माना जा रहा है कि सिग्नल देने में गलती हुई होगी।”

कब तक चालू होगी ट्रेनों की आवाजाही

रेलवे की ओर से आधिकारिक तौर पर इस बारे में कुछ नहीं बताया गया है। हालांकि, रेलवे बचाव कार्य से जुड़े अनुभवी लोगों के एक समूह ने घटनास्थल का दौरा किया और कहा कि सोमवार से पहले पूरी तरह से मलबा हटाना संभव नहीं है। ऐसे में मंगलवार को ट्रेन सेवाएं सामान्य हो सकती हैं। दरअसल, अब रेलवे का सिरदर्द रूट पर सेवाओं को पूरी तरह से सामान्य करने का है। मलबे हटाने का काम शनिवार से शुरू हो गया। हालांकि, दुर्घटनास्थल पर रेलवे लाइन के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। सीमेंट के स्लीपर टूटे हुए हैं, लोहे की छड़ें निकली हुई है। रेलवे के एक सूत्र ने दावा किया, मंगलवार से पहले उस रूट पर रेल सेवाएं पूरी तरह सामान्य होने की संभावना नहीं है।

हालांकि आपात स्थिति में कम से कम एक लाइन अप और डाउन लाइन पर ट्रेनों को चलाने का प्रयास करेगी। पश्चिम बंगाल से बहुत से लोग इलाज के लिए दक्षिण भारत जाते हैं। इसके अलावा, सबसे लोकप्रिय बंगाली तीर्थ स्थलों में से एक पुरी जाने वाली सभी ट्रेनें बालासोर से होकर गुजरती हैं। रविवार को स्नान के कारण कई तीर्थयात्रियों के पास पुरी जाने वाली ट्रेन का टिकट था। ऐसे में कई ट्रेनों के रद्द होने से भारी आर्थिक नुकसान होने का खतरा है। 

बचाव कार्य कैसे हुआ?

हादसा शुक्रवार शाम करीब सात बजे हुआ। इसके बाद से बालासोर में स्थिति गंभीर है। यात्रियों को बचाने के लिए रात भर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है। बचावकर्मियों से लेकर अस्पताल के डॉक्टर तक सब बचाव में कूद पड़े। आपदा प्रबंधन अधिकारियों से लेकर दमकलकर्मियों तक रात के अंधेरे से लेकर शनिवार सुबह तक बचाव कार्य जारी है। शुक्रवार शाम हादसे के बाद एंबुलेंस और मोबाइल हेल्थ यूनिट की गाड़ियां मौके पर पहुंच गईं। शुक्रवार शाम से कुल 200 एंबुलेंस, 50 बसें और 45 मोबाइल हेल्थ यूनिट मौके पर पहुंच चुकी हैं। पटरी से उतरे डिब्बे के फर्श से यात्रियों को बचाने के लिए गैसकटर का इस्तेमाल किया गया। स्थानीय लोग भी सामने आए। घायल यात्रियों को बचाया तो कभी पानी देकर उनकी प्यास बुझाई। कभी-कभी वह रेलवे लाइन के आसपास बिखरे सामानों को इकट्ठा कर एक जगह करते हुए नजर आए। कई लोग अस्पताल में घायलों के लिए रक्तदान करने के लिए कतार में खड़े हैं।



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